समाजशास्त्र एवं निर्देशन / SOCIOLOGY & GUIDANCE TOPICS

निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Guidance?

निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Guidance?
निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Guidance?

निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? निर्देशन की प्रकृति एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।

निर्देशन का अर्थ (Meaning of Guidance)

निर्देशन एक क्रिया है, जिसके अनुसार एक व्यक्ति को सहायता प्रदान की जाती है, जिससे वह अपने निर्णय ले सके, निष्कर्ष निकाल सके और अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सके। निर्देशन के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व, अपनी क्षमता, योग्यता तथा मानसिक स्तर का ज्ञान प्राप्त करता है।

निर्देशन किसी भी समस्या का समाधान स्वयं नहीं करता है वरन् व्यक्ति को ही समस्या का समाधान करने योग्य बनाता है। इस प्रकार निर्देशन का उद्देश्य है कि व्यक्ति को उसकी शक्तियों का ज्ञान इस प्रकार कराये कि वह अपनी शक्तियों को पहचान सके ।

व्यक्ति तथा समाज का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध को प्रभावशाली बनाने हेतु यह आवश्यक है कि व्यक्ति तथा समाज दोनों का ही समान रूप से विकास होता रहे। यह तभी सम्भव है जब दोनों एक-दूसरे के विकास में अपनी-अपनी भूमिका निभाते रहें। व्यक्ति स्वयं को समझे, ताकि उसकी योग्यताओं, क्षमता तथा रुचियों का अधिकतम सम्भावित विकास हो सके। आने समय परिवेश में अपने वाली विभिन्न परिस्थितियों में वह अपना समायोजन कर सके। व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से अपनी समस्याओं का समाधान खोजने तथा विभिन्न परिस्थितियों में बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय ले सके। निर्देशन दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा समाजशास्त्रीय, तीनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह तीनों प्रकार की सम्बन्धित पद्धति पर आधारित प्रत्यय अथवा प्रक्रिया है। दार्शनिक दृष्टि से यह व्यक्ति के समग्र विकास को अपना आधार बनाकर सहायक होता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा अधिक कुशल तथा योग्य व्यक्ति अपने से कम सक्षम व्यक्ति को इस प्रकार सहायता प्रदान करता है, जिससे वह सामाजिक परिस्थितियों में समायोजन कर पाने में समर्थ हो सके। इस प्रक्रिया में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिए इस प्रकार से सहायक होता है, जिससे समाज कल्याण के अवसरों में अधिक से अधिक वृद्धि हो सके।

रिक्सियों और जेरोन के अनुसार निर्देशन के निम्नलिखित आठ कार्य हैं-

  1. अपनी मानसिक क्षमताओं के सन्दर्भ में व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं को पहचान सके, उस कार्य में उसको सहायता करना।
  2. व्यक्ति की इस प्रकार सहायता करना कि वह इतना अच्छा आदमी बन जाए, जितनी कि उसमें क्षमता है।
  3. वांछित मूल्यों के विकास में व्यक्ति की सहायता करना ।
  4. व्यक्ति को अपनी रुचियों, अभिरुचियों, अभिवृत्तियों तथा योग्यताओं की जानकारी प्राप्त करने में सहायता करना।
  5. व्यक्ति को अधिक से अधिक आत्म-निर्देशन बनाने में सहायता करना।
  6. व्यक्ति की इस उद्देश्य से सहायता करना कि वह अपनी मानसिक प्रवृत्तियों को समझे, स्वीकार करे तथा उन्हें काम में लाये ।
  7. व्यक्ति को ऐसे अवसर उपलब्ध कराना, जिससे कि अपने कार्य-शेन तथा शैक्षिक प्रयासों के विषय में और अधिक सीख सके ।
  8. व्यक्ति को ऐसे अनुभव प्राप्त करने में सहायता करना, जो कि उसकी निर्णय शक्ति में वृद्धि करते हैं।

निर्देशन की प्रकृति पर विचार करते हुये यह स्पष्ट हो गया है कि इसमें व्यक्तित्व के विकास के लिए उसके आपसी सम्बन्धों तथा शिक्षा संस्थाओं की उपयोगिता का संकेत किया गया है।

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Anjali Yadav

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