समाजशास्त्र एवं निर्देशन / SOCIOLOGY & GUIDANCE TOPICS

शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व

शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व
शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व

शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व का उल्लेख कीजिए।

शैक्षिक निर्देशन का अर्थ (Meaning and Educational Guidance)

‘शैक्षिक निर्देशन’ व्यक्ति के बौद्धिक विकास के निमित्त सहायता करने का प्रयास है। शिक्षण अथवा अधिगम से सम्बन्धित कोई भी क्रिया शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत आती है।

जी० ई० पायर्स के अनुसार- “शैक्षिक निर्देशन विद्यार्थी के विकास अथवा शिक्षा के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करने हेतु विद्यार्थी के विभिन्न गुणों तथा विकास के अवसरों के विभिन्न समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाला प्रक्रम है।”

आर्थर जे० जोन्स के अनुसार- “शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध विद्यार्थियों को प्रदान की जाने वाली उस सहायता से है, जो उन्हें विद्यालीय पाठ्यक्रमों द्वारा शिक्षालय के जीवन से सम्बद्ध चुनावों तथा समायोजनों के लिए अपेक्षित है।”

रूथ स्टैंग के अनुसार- “शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को उचित कार्यक्रमों के वरण तथा उसमें प्रगति करने में सहायता देना है।”

शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Educational Guidance)

शिक्षा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विद्यालय और समाज दोनों ही प्रयत्न करते हैं। शैक्षिक निर्देशन उद्देश्यों की पूर्ति तथा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है।

शैक्षिक निर्देशन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

1. विभिन्न प्रकार के विद्यालयों के उद्देश्यों तथा कार्यों से विद्यार्थियों को परिचित कराने में सहायता प्रदान करना।

2. अपनी रुचि के अनुसार विद्यालय में प्रवेश से सम्बन्धित शर्तों की सूचना प्राप्त करने में विद्यार्थियों की सहायता करना।

3. प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं से सम्बन्धित सूचनायें प्राप्त करने में विद्यार्थियों की सहायता करना। देश में प्रान्तीय और केन्द्रीय स्तर पर प्रशासकीय कार्यों के लिए कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। योग्य व्यक्तियों का निर्वाचन प्रतियोगी परीक्षाओं के उत्तीर्ण कर लेने पर होता है। लोक सेवा आयोग और इस प्रकार की अन्य संस्थाओं के द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के सम्बन्ध में विद्यार्थियों को सूचनायें दी जानी चाहिएँ। इस कार्य में शिक्षा निर्देशन सहायक होता है।

4. सम्भावित और शैक्षिक अग्रिम शिक्षा से सम्बन्धित सूचनायें प्रदान करने में विद्यार्थियों की सहायता करना ।

शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Educational Guidance)

व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं के आधार पर ही शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित होते हैं। जैसे-जैसे समाज की संरचना जटिल होती जा रही है, वैसे ही विचारधारा भी परिवर्तित होती जा रही है। फलस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और उसका पुनः संगठन हो रहा है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षा विद्यार्थियों की अभिरुचि, योग्यता तथा रुचि के अनुसार नहीं दी जाती, जिसके कारण विद्यार्थियों की शक्ति, धन और समय का अपव्यय होता है। शैक्षिक निर्देशन के द्वारा ही यह अपव्यय कम हो सकता है।

निम्नलिखित कारणों से भी शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता है-

1. अग्रिम शिक्षा का चयन- शैक्षिक निर्देशन के अभाव में विद्यार्थी अपनी शिक्षा का निश्चय नहीं कर पाते हैं। 10वीं कक्षा पास करने के पश्चात् विद्यार्थी को व्यावसायिक, औद्योगिक और अन्य प्रकार के विद्यालयों में प्रवेश लेने की समस्या सामने आती है। कभी-कभी विद्यार्थी ऐसे विद्यालय में प्रवेश ले लेते हैं, जहाँ वे अपना समायोजन नहीं कर पाते हैं। शैक्षिक निर्देशन द्वारा इस प्रकार की समस्या का समाधान हो सकता है।

2. नये विद्यालय में समायोजन- जब विद्यार्थी नये विद्यालय में प्रवेश लेता है तो उसे विद्यालयों के नियमों का उचित ज्ञान नहीं होता है। विद्यार्थी के समक्ष समायोजन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह समस्या तब अधिक घातक हो जाती है, जब किसी प्रामीण अंचल का विद्यार्थी नगर के विद्यालय में प्रवेश ले लेता है, शैक्षिक निर्देशन द्वारा इस प्रकार की समस्या का भी समाधान हो जाता है।

3. पाठ्य विषय का चयन- पाठ्यक्रम में निरन्तर परिवर्तन हो रहे हैं। जहाँ वैकल्पिक विषयों का प्रश्न आता है, वहाँ विद्यार्थी के समक्ष चयन का प्रश्न आता है। मुदालियर आयोग द्वारा इस बात को स्वीकारा गया है कि विद्यार्थियों में व्यक्तिगत भिन्नता के अनुरूप पाठ्यक्रम में भी विभिन्न पाठ्य विषयों का प्रावधान होना चाहिए। ऐसी स्थिति में यदि विद्यार्थियों को शैक्षिक निर्देशन नहीं दिया जाता है तो वे गलत विषयों का चयन कर लेते हैं जिसके कारण शिक्षा में अवरोध तथा अपव्यय की समस्या में वृद्धि होती है। इसलिए शैक्षिक निर्देशन के द्वारा विद्यार्थियों को उपयुक्त विषय के चयन में सहायता देने की आवश्यकता है।

4. उपजीविकाओं का ज्ञान- शिक्षित बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने के लिए देश में चलायी जा रही पंचवर्षीय योजनाओं में उपजीविकाओं के नये द्वार खुलते जा रहे हैं, नयी-नयी योजनायें तथा नये-नये कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे हैं। विद्यार्थियों को इनकी जानकारी देने का मुख्य साधन निर्देशन ही है।

5. अवरोधन तथा अपव्यय को दूर करना- प्राथमिक शिक्षा स्तर पर अपव्यय बहुत अधिक होता है। भारतीय संविधान के अनुसार 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के विद्यार्थियों के लिये अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था है, परन्तु अधिकतर विद्यार्थी साक्षरता प्राप्त करने से पहले ही विद्यालय छोड़ देते हैं तथा अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है। इसलिए शैक्षिक निर्देशन के माध्यम से इसका समाधान किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

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